Thursday, July 26, 2007

फुलों की तरह ...


फुलों की तरह लब खोल कभी
ख़ूश्बू की ज़ुबा मे बोल कभी

अलफ़ाज़ परखता रेहता है
आवाज़ हमारी तोल कभी

अन्मोल नहीं लेकिन फिर भी
पूछो तो मुफ़्त का मोल कभी

खिड़की में कटी है सब राते
कुछ चौर्स थीं, कुछ गोल कभी

ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
हो जाता है डांवां डोल कभी

फुलों की तरह लब खोल कभी
ख़ूश्बू की ज़ुबा मे बोल कभी

1 comment:

उन्मुक्त said...

सुन्दर कवितायें हैं। स्वागत है हिन्दी चिट्ठाजगत में।